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सुधावती अग्रवाल

सुधावती जी भागलपुर की बहू बनकर वर्ष 1934 में बनारस से भागलपुर आई थीं, उनकी शादी साहित्यनुरागी सत्येंद्र नारायण अग्रवाल से हुई थी जो कालांतर में भागलपुर से कॉंग्रेस के टिकट पर विधायक बने और विधान सभा उपाध्यक्ष का पद भी संभाला था । बाद के वर्षों में वे भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी बनाए गए। सुधावती जी का जन्म बनारस के प्रसिद्ध अग्रवाल परिवार में हुआ था। उनके पितामह सुप्रसिद्ध दार्शनिक – विद्वान डॉ० भगवान दास थे और उनके पिता बाबू श्री प्रकाश थे जो अपने समय में कांग्रेस के बड़े नेताओ में थे। सुधावती जी की परवरिश स्वतन्त्रता सेनानियों के बीच में हुई थी और चाहे मोतीलाल नेहरू हों या राजगोपालाचारी या जवाहरलाल नेहरू सबका उन्हें स्नेह मिला था। उनका लालन - पालन एक ऐसे वातावरण में हुआ था, जिसने उन्हें निडर और स्वाभिमानी बना दिया था। वे स्वभाव से बड़ी खुद्दार थीं और निर्भयता के साथ चुनौतियों का सामना करती थीं। राजनैतिक वातावरण पली सुधावती जी में देशप्रेम कूट –कूट कर भरा था और ज़रूरतमंद लोगों को आगे बढ़ कर सहायता करने मे उन्हें आत्मीय सुख मिलता था। कहते हैं कि हर पुरुष की सफ़लता के पीछे नारी होती है, सत्येंद्र बाबू के विधायक बनने में सुधावती जी का योगदान कम नहीं था। वे चुनाव के वक्त महिला मोर्चा को संभाल लेती थीं और घर - घर जाकर सत्येंद्र बाबू के पक्ष में प्रचार करती थीं, परिणाम स्वरुप सत्येंद्र बाबू 1952 से 1967 तक विधान सभा चुनाव जीतते रहे। सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी संलग्नता देखते हुये बिहार राज्य समाज कल्याण बोर्ड ने उन्हें नाथनगर ग्रामीण क्षेत्र की समाज कल्याण की योजना का चेयरमेन नियुक्त कर दिया। उन्होंने अपने नए दायित्व का इस तरह से पालन किया कि सारे देश में उनकी प्रसिद्धि फैल गई और अखिल भारतीय समाज कल्याण बोर्ड की चेयरपर्सन दुर्गाबाई देशमुख नाथनगर ग्रामीण परियोजना के कार्यों को देखने के लिए खुद दिल्ली से भागलपुर आयीं। वे सुधावती जी के कार्यों से इतनी प्रभावित हुईं कि उहोंने सुधावती जी को बिहार समाजकल्याण बोर्ड के चेयरमेन पद संभालने का ऑफर दे दिया, लेकिन सुधावती जी ने बड़ी विनम्रता से उन्हें मना कर दिया। भागलपुर एस पी ने जब भागलपुर में राइफल क्लब की स्थापना की, तब सुधावती जी ने आगे बढ़ कर इसमें भाग लिया। उनका मकान ज़रूरतमंद लोगों के लिए सदा खुला रहता था, हर ओर से निराश लोग उनके पास सहायता के लिए आते थे और वे मदद करती थीं। एक बार जाड़े की मध्यरात्रि में एक घबराई सी औरत उनके दरवाजे पर आकर ज़ोर - ज़ोर से पुकारने लगी – बड़ी बहुरानी, बड़ी बहुरानी!! सुधावती जी की नींद टूट गई, शाल लपेट कर नीचे आयीं – कौन ? “हम हैं पर्वतिया की माय, गोलाघाट गढ़ैया से आई हैं, पर्वतीया को बच्चा होनेवाला है, बहुत दर्द है, मर जाएगी, बचा लो बड़ी बहू” – कह कर वह रोने लगी। घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा। उन्होंने अपने ड्राइवर गंगा को उठाया और गाड़ी निकलने को कहा, गाड़ी लेकर वे गोलाघाट गढ़ैया गईं, पर्वतीया और उसकी माँ को लेकर सीधे सदर अस्पताल पहुंची, जब तक उसे बच्चा नहीं हो गया, सुधावती जी अस्पताल में ही रहीं । ऐसी सहायता आज कौन करेगा? उनकी लोकप्रियता का बड़ा कारण यह ही था।

प्राकृतिक चिकित्सा की ओर उनके रुझान की अपनी कहानी है। प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र ,गोरखपुर में विट्ठलदास मोदी तथा महावीर प्रसाद पोद्दार के सानिध्य में रह कर प्राकृतिक चिकित्सा में दक्ष होकर आए स्वतन्त्रता सेनानी डॉ सदानन्द सिंह ने 18 दिसंबर 1954 को यहाँ भागलपुर में प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना एक किराये के मकान में की, जिसका विधिवत् उद्घाटन लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 14 मार्च 1955 को किया। प्राकृतिक चिकित्सा के कार्यों का कैसे विस्तार हो, इसपर विचार - विमर्श करने डॉ सिंह प्रायः सत्येंद्र नारायण अग्रवाल के पास आते रहते थे। सुधावती जी हाल में ही बंबई से अपने पिता श्रीप्रकाश जी के पास रह कर लौटी थीं। उस समय श्रीप्रकाश जी राज्यपाल थे, अपने बंबई प्रवास में वे समुद्र में नहाने गईं थीं और अपने साथ एक अजीव तरह की खुजली (त्वचा का रोग) लेकर लौटी थीं। अनेक जगहों पर कितना इलाज उन्होंने कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने इसकी चर्चा सदानंद जी से की। सदानंद जी ने भरोसा दिलाया कि वे इस कष्ट से उन्हें मुक्ति दिला देंगे। आधे मन से सुधावती जी ने प्रकृतिक चिकित्सा शुरू की, लेकिन चमत्कार हो गया, वे शीघ्र ही खुजली से मुक्त हो गईं और उनका विश्वास प्रकृतिक चिकित्सा के प्रति दृढ़ हुआ। वे प्रायः चिकित्सा केंद्र आने - जाने लगीं। इससे सदानंद जी को भी एक बड़ा सहारा मिला और सुधावती जी केंद्र की महासचिव बनाई गईं। बाद में इस केन्द्र का नाम तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र हो गया। “तपोवर्धन” सुधावतीजी के दिवंगत छोटे भाई का नाम था, वे पेशे से पायलट थे। उनका निधन एयरक्रेश में चोटिल होने के कुछ बाद इलाज के क्रम में हो गया था। सुधावती जी और सदानन्द जी के सम्मिलित प्रयास से चिकित्सा केंद्र की प्रसिद्धि चारो ओर फैल गई। रोगियों की संख्या भी दिनों दिन बढ़ने लगी। केन्द्र के विस्तार के लिए निजी भवन की आवश्यकता थी लेकिन ज़मीन और भवन निर्माण के लिए बहुत बड़ी धनराशि की ज़रुरत समझी गई । वे सदानंद जी के साथ बंबई पहुंची, जहां उनके पिता श्री प्रकाश जी गवर्नर थे। श्री प्रकाश जी के सहयोग और सुधावती जी के अथक परिश्रम फलस्वरूप 22 अप्रैल 1962 को बंबई के बिरला मातुश्री सभागार में ‘रवि नाइट‘ का आयोजन धन संग्रह के लिए किया गया, जिसमें मो० रफ़ी, तलत महमूद आदि ख्यात गायकों ने भाग लिया था। इस कार्यक्रम से सवा लाख रुपए जमा हुये । सुधावती जी के प्रयास से इस केन्द्र में प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ० ज़ाकिर हुसैन, श्री प्रकाश जी, आदि देश की बड़ी विभूतियाँ इस केंद्र को देखने आई। यह सुधावती जी का प्रयास था कि डॉ राजेन्द्र प्रसाद - प्रथम राष्ट्रपति, जवाहरलाल नेहरू, घनश्याम दास बिरला ,जे० आर० डी० टाटा, पी० बी० गोदरेज आदि ने अपने कोष से इस चिकित्सा केंद्र को आर्थिक मदद की। केंद्र के अपने भवन का शिलान्यास सुधावती जी के आग्रह पर प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 15 फरवरी 1962 को किया।
(लेखक - मुकुटधारी अग्रवाल)