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कार्य प्रणाली

हमारा चिकित्सा दर्शन :

हम कभी भी ज़रूरी जाँच, दवा या शल्य क्रिया का विरोध नहीं करते हैं। हम अनावश्यक महंगी जाँच, बेवजह दवा तथा गैरज़रूरी ऑपरेशन का पुरज़ोर विरोध करते हैं। चिकित्सा एक सेवा का कार्य है और इसमें न्यूनतम आर्थिक सहयोग की भी आवश्यकता होती है, इसे हम नहीं नकारते हैं। किन्तु हमारा संस्थान रोगी एवं प्रियजनों के भय को पूंजी की तरह इस्तेमाल करते हुए इलाज के नाम पर व्यवसाय करना अनुचित और अमानवीय समझता है।

रोग के कारण की पहचान :

हमारी चिकित्सा प्रणाली में हम मरीज़ से लम्बी बातचीत कर रोग तथा कारण की पहचान करते हैं एवं उनकी मानसिक अवस्था को समझते हुए, उनके भय एवं निराशा को संवेदना के साथ अपनत्व की भावना रखते हुए महसूस करते हैं तथा उनमें स्वस्थ होने की आशा और विश्वास जगाते हैं, इसके बाद उनकी विधिवत् चिकित्सा प्रारम्भ की जाती है।

चिकित्सा क्रम का निर्धारण :

मुखाकृति पर रोग के लक्षणों से रोग के वास्तविक कारण की खोज, पहचान व समीक्षा के उपरान्त चिकित्सा क्रम और आहार तालिका का निर्धारण किया जाता है। मरीज़ के चेहरे तथा अन्य स्थानों पर उपस्थित रोगों के लक्षणों की फ़ोटोग्राफ़ी तथा अन्य आवश्यक जाँच, यदि कोई होनी हो तो, कराई जाती है। आहार जो कि प्राकृतिक चिकित्सा में औषधि का दर्जा रखता है, उसपर नियंत्रण एवं अनुशासन से अनुपालन कराते हुए चेहरे के लक्षणों के अनुसार मिट्टी, पानी, धूप, हवा द्वारा चिकित्सा क्रम आगे बढ़ाया जाता है। मरीज़ों से रोज़ाना उनके स्वास्थ्य की दशा तथा अन्य विवरण लिखित लिए जाते हैं एवं साप्ताहिक प्रगति प्रतिवेदन लेने के उपरान्त आरोग्य लाभ की गति की समीक्षा की जाती है।

जीवित भोजन, जल और हवा :

हम जीवित पोषक तत्वों से युक्त आहार हेतु ऐसी पाक विधि से भोजन तैयार करते हैं जिससे पोषक तत्व नष्ट न हो जाएँ। रंगी हुई सब्ज़ी को नकार कर बदरंग यानी स्वाभाविक रंग की सब्ज़ी की हिमायत करते हैं। हम मरीज़ों को सिखाते हैं कि सब्ज़ियों में लगे कीड़े इस बात का प्रमाण होते हैं कि इसमें ज़हरीली दवा नहीं डाली गई है। पेयजल की परिभाषा अत्यंत ही सरल है; जल में यदि तीन गुण हों तो वह पेयजल होता है। ये हैं रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन। हम पेयजल को जीवित अवस्था मे ग्रहण करने की वक़ालत करते हैं। पानी के अनमोल खनिज लवणों को मशीन से तोड़ कर या उबाल कर पीना शरीर को कमज़ोर बना देता है, इसलिए हम इसे इस्तेमाल नहीं करने की सलाह देते हैं। मृत हवा, पानी और भोजन जीवन नहीं दे सकते, अतः इन्हें जीवित अवस्था में ही ग्रहण करना चाहिए। प्रकृति विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित यह सोच हमारी व्यावहारिक कार्यप्रणाली है और हमारे केन्द्र के मिट्टी से बने भोजनालय में इसी तरह का भोजन और पानी सभी मरीज़ों के लिए उपलब्ध कराया जाता है। इस केन्द्र की विशेषताओं में मिट्टी के कुटीर में आवास का एक अलग ही चिकित्सकीय महत्व है। मिट्टी, प्राकृतिक खनिज लवणों से समृद्ध होती है और शारीरिक खनिज से इसकी मित्रता होती है इसीलिए मिट्टी के कुटीर में आवास करने से जल्दी ही शरीर के अन्दर की क्षति की पूर्ति होने लगती है। साथ ही मिट्टी, गर्मी की तपिश और ठंढ की ठिठुरन को भी रोक लेती है, जिससे कमरे का तापमान सामान्य और सुखद बना रहता है। इससे एयर कंडीशन और हीटर दोनों का इस्तेमाल सीमित हो जाने के कारण ऊर्जा की भी बहुत बचत होती है।

मिट्टी का मकान ही क्यों ? :

हमारे कई वर्ष लम्बे चले अनुसन्धान में पाया गया है कि वे लोग जो मिट्टी के मकान में रहते हैं, पक्के के मकान में रहने वाले लोगों से ज़्यादा अच्छा उनका स्वास्थ्य एवं आंखों की दशा है। इस जानकारी ने चकित किया कि मिट्टी के मकान में रहने वाले परिवारों में जीर्ण रोग बहुत ही कम अथवा न के बराबर हैं, लेकिन जो परिवार कुछ सम्पन्न होने के उपरान्त पक्के के मकान में रहने लगे, धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य कमज़ोर होता गया। यानी ऐसा कुछ है मिट्टी में जो प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। हमने आदिवासी बस्तियों का भी अध्ययन किया है और सकारात्मक नतीजे मिलने के बाद, इसी केन्द्र के प्रांगण में हमने एडोबी तकनीक के सहारे मिट्टी के मकान बनाने की कला को अपनाया। मिट्टी के मकान में आधुनिक स्नानागार और शौचालय का संगम अपने आप में अनूठा है। हमारे केन्द्र में भोजनालय समेत सप्तसिंधु से नामित ऐसी कुटियाएँ अन्तःवासी मरीज़ों के आवास के लिए उपलब्ध है। यह भी एक कारण है कि इस केन्द्र में असाध्य रोगों से ग्रसित मरीज़ों को तुरंत आराम मिलना शुरु हो जाता है।

केन्द्र के निर्माणाधीन एडोबी तकनीक का मिट्टी का कॉटेज