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निदेशक का अनुरोध

“YOGA – A METHOD IN NATUROPATHY – B. K. S. AYENGAR” प्रख्यात योग गुरु श्री बी॰ के॰ एस॰ आयंगर के अनुसार ”प्राकृतिक चिकित्सा के अधीन योग भी एक पद्धति है”। यानी प्राकृतिक चिकित्सा या प्रकृति एक माँ है और योग उसकी योग्य संतान है। ध्यानाकर्षण इस बिन्दु पर करवाना चाहता हूँ कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संतान की छाया में माँ छिप सी गई है, जबकि इस माता की आरोग्यकारी शक्तियाँ असीम हैं। इस माता प्रकृति ने अपने कुछ नियम और संविधान बनाए हैं, उनका पालन करने पर स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है और उल्लंघन करने पर कठोर दण्ड रूपी रोग और शोक।
प्रकृति के अपने रहस्य हैं और है अपनी संप्रेषण शैली, प्रकृति अपनी इस कूट भाषा में हमसे हमेशा कुछ कहती है, यदि उसको समझ कर हम उसका पालन करते हैं तो आरोग्य स्वाभाविक रूप से हमारे साथ बना रहता है। यदि किसी भूल या अज्ञानवश हम रोगी हो भी गए हों, चाहे रोग का स्वरूप कितना भी भयंकर क्यों न हो, प्रकृति के बताए नियमों पर चल कर हम पुनः अपनी स्वाभाविक अवस्था में वापस आ सकते हैं।

निरोगी होगी सुन्दर काया अर्थात् जो सुन्दर दिख रहा है वो निरोगी होगा ही। चरक, सुश्रुत से आजतक स्वदेशी एवं विदेशी कई प्रकार की चिकित्सा पद्धतियाँ प्रचलन में आईं जैसे ऐलोपैथी या अंग्रेज़ी दवाएँ, आयुर्वेद, होमियोपैथी, यूनानी, मंत्र चिकित्सा और प्राकृतिक चिकित्सा। इलाज के हर तरीके की अपनी ख़ासियत और कमज़ोरियाँ हैं। यदि सभी पद्धतियों की तुलना की जाए तो सहज ही स्पष्ट हो जाएगा कि एैलोपैथी बीमारियों तथा आपातकालीन स्थितियों के प्रबंधन की सर्वोत्तम विधि है और प्राकृतिक चिकित्सा स्वस्थ होने तथा स्वस्थ बने रहने का सरल और सर्वोच्च वैज्ञानिक तरीका है।

पिछले 19 वर्षों में हमने इसी तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र में प्रकृति के सिद्धान्तों को व्यवहार में लाकर अनगिनत चमत्कारी परिणाम देखे, कुदरत की असीम क्षमता का अनुभव किया और स्वयं भी चकित होते रहे हैं, जिसके कुछ प्रसंग आपसे साझा करने की इच्छा है।
- डॉ० जेता सिंह