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बाह्य मरीज़

सिद्धांत रूप में स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि रोज़मर्रा के जीवन की आपाधापी, कोलाहलपूर्ण और प्रदूषित वातावरण में निवास, अप्राकृतिक जीवनशैली और कृत्रिम खान - पान की बिगड़ी हुई आदतें, चिन्ता करने का स्वभाव और इन सबके सामूहिक प्रभाव से शरीर के अन्दर विषैले पदार्थों का जमा हो जाना ही रोगों का मूल कारण होता है। प्राकृतिक चिकित्सा विधि में सबसे महत्वपूर्ण है कि हम ऊपर लिखे हुए कारणों को दूर करें, शरीर की अन्दरूनी सफ़ाई करें और खोया हुआ स्वास्थ्य फिर से वापस पाने की कला सीखें और यह बिल्कुल सम्भव है। इसके लिए किसी भी व्यक्ति को प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र के परिसर के अन्दर सघन हरियाली के बीच, शुद्ध स्वच्छ - शान्त प्रदूषण रहित प्राकृतिक वातावरण में रह कर अपने रोग के कारणों को जड़मूल से दूर करना चाहिए और इसका कोई विकल्प नहीं होता है।

अपितु जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं कि तुरन्त रोग का इलाज करवाना भी ज़रूरी हो और वर्तमान हालात घर से अलग रहने अथवा कार्यालय या व्यवसाय से तत्काल छुट्टी लेने की इजाज़त नहीं दे रहे हों। वैसे में यदि मरीज़ स्थानीय हों तो इसके लिए बाह्य चिकित्सा का सहारा ले सकते हैं। ऐसे में अंतःवासीय जितना लाभ तो नहीं मिल सकता किन्तु इस प्रकार से आंशिक लाभ या तुलनात्मक रूप से कुछ कम फ़ायदा तो लिया ही जा सकता है। ऐसे व्यक्ति बाह्य चिकित्सा में अपना नामांकन करवा कर, केन्द्र में निर्धारित किए गए समय पर आकर प्राकृतिक चिकित्सा के उपचार ले सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को खानपान के नियंत्रण के लिए आहार तालिका और मार्गदर्शन दिया जाता है जिससे वे स्वयं को अनुशासित कर अपना स्वास्थ्य बहुत हद तक अच्छा कर सकते हैं। इस तरह की परिस्थितियों में परिजनों का दायित्व है कि मरीज़ को मानसिक शांति और हर प्रकार का अपेक्षित सहयोग घर पर ही प्रदान करें, मरीज़ का उत्साहवर्धन करें। चिकित्साकाल में मरीज़ की मनःस्थिति अतिसंवेदनशील अवस्था में होती है इसलिए किसी भी परिस्थिति में मरीज़ का मनोबल न तोड़ें और न ही उसका उपहास उड़ाएँ, जिन आदतों के लिए मरीज़ को मना किया गया है, उसका पालन करने में उसकी हर प्रकार से सहायता करें।

बाह्य चिकित्सा में अपना नामांकन करवाए हुए मरीज़ की अवस्था और रोग की स्थिति के अनुसार चिकित्सा क्रम बनाया जाता है और सुबह 06ः30 से लेकर दोपहर 12ः30 तक और शाम को 03ः30 से 06ः30 तक अलग-अलग समय सारणी के अनुसार मरीज़ों को मिट्टी, पानी, धूप और विभिन्न प्राकृतिक उपचार दिए जाते हैं, परिसर की शुद्ध हवा अपना उपचार स्वतः करती रहती है।