शरीर को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से मानव तरह तरह के व्यायाम करता रहता है, जिससे उसका शरीर स्वस्थ होता है, और शरीर से बीमारियों का नाश भी, वैसे ही मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के उद्देश्य से ध्यान करना चाहिए। मनुष्य ध्यान करने के लिए भी भिन्न भिन्न पद्धति अपनाता रहता है, उन्ही में से एक है, विपश्यना ध्यान।
विपश्यना ध्यान करके हम जहाँ मानसिक रूप से स्वस्थ हो सकते है, वहीं अपने ऊपर नियंत्रण भी रखना सीखते है।
विपश्यना ध्यान क्या होता है?
असल में विपश्यना ध्यान, मन को स्वस्थ, शांत और निर्मल करने की वैज्ञानिक विधि होती है। यह आत्मनिरीक्षण की एक प्रभावकारी विधि है। इससे आत्मशुद्धि की जाती है। दूसरे शब्दों में इसे मन का व्यायाम कहा जा सकता है।
जिस तरह शारीरिक व्यायाम करने से शरीर को स्वस्थ और मज़बूती प्रदान की जाती है, वैसे ही विपश्यना ध्यान से मन को स्वस्थ बनाया जा सकता है। हर परिस्थिथियों का सामना करने के उद्देश्य से इस ध्यान का उपयोग किया जाता है और इसके निरंतर अभ्यास से मन हर स्थिति में संतुलित रहता है।
असल में विपश्यना शब्द पाली भाषा के शब्द ‘पस्सना’ से बना है, जिसका अर्थ है “देखना” (जो चीज जैसी है, उसे उसके सही रूप में देखना)
यह तकनीक हजारों साल पहले की तकनीक है, इसका उद्धव लगभग 2600 साल पहले महात्मा बुद्ध द्वारा किया गया। बीच में यह विद्या लुप्त हो गई थी और यह माना जाता है की हर 5000 साल पर यह विद्या लुप्त हो जाती है। दिवंगत सत्य नारायण गोयनका सन 1969 में इसे म्यान्मार से भारत लेकर आए।
चलती हुई श्वास कार्य जैसी चल रही है, बैठकर उसे देखते रहना है ही विपश्यना ध्यान कहलाता है। इसको हम उदाहरणों की मदद से समझने का प्रयास करेंगे, जैसे राह के किनारे बैठकर कोई राह चलते यात्रियों को देखता है, वह क्या कर रहा है और कहाँ जा रहा है, उसकी सारी गतिविधियों को देखता है। नदी-तट पर बैठ कर नदी की बहती धार को और उसमे उपस्थित मछलियों को देखता है।
राह से निकलती हुई कारें, बसें आदि को देखता है, कहने का तात्पर्य है की जो भी है, जैसा है, उसको वैसा ही देखते रहना विपश्यना ध्यान है। ज़रा भी उसे बदलने की कोशिश नही करनी चाहिए। बस शांत बैठ कर श्वास को देखते रहना और देखते-देखते ही श्वास और शांत हो जाती है। क्योंकि देखने में ही शांति है। इसी को विपश्यना ध्यान कहा जाता है।
विपश्यना ध्यान करने से जहाँ मन शांत होता है वही उससे शरीर में कई परिवर्तन देखने को मिलते है। जैसे -
- लगातार इसका अभ्यास करने से शरीर में रक्त संचार बढ़ता है, रक्त संचार बढ़ने और तनाव मुक्त होने से चेहरे में रौनक आती है।
- इसके नियमित अभ्यास से में मन शांत होता है तथा आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है।
- एकाग्रता बढ़ाने के लिए यह एक बहुत ही शानदार उपायों में से एक है। इसका नियमित अभ्यास करने से एकाग्रता बढ़ती है और ध्यान लक्ष्य की ओर केंद्रित होता है साथ ही दिमाग का विकास होता है।
- इसको करने से व्यक्ति तनाव मुक्त हो जाता है।
- इस ध्यान को करने से सकारात्मक विचार उत्पन्न होते है और नकारात्मक विचार खत्म हो जाते हैं।
- मन और मस्तिस्क बिलकुल शांत रहता है।
- मन में हमेशा शांति बनी रहती है।
- सिद्धियां स्वतरू ही सिद्ध हो जाती है।
- नियमित रूप से करने से देखते-देखते ही आपके सारे रोग दूर हो जाएंगे।