संस्थापक डॉ सदानन्द सिंह, कठिन आर्थिक परिस्थितियों में भी जीवनपर्यन्त इस सिद्धांत पर अडिग रहे कि पैसे के आभाव में कोई ग़रीब आदमी इस केंद्र से बिना इलाज के न लौट जाए, अक्सर ऐसे लोगों को अपनी संक्षिप्त आय से वे चुपचाप आर्थिक सहायता भी कर दिया करते थे। हालांकि उन्होंने कभी किसी याचक को खाली हाथ नहीं जाने दिया लेकिन वे प्रयत्नशील भी रहते थे कि इस बारे में लोग न जान सकें, उन्हें किसी की मदद का प्रचार, ओछा और निम्नस्तरीय काम लगता था।
तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र में बड़े पैमाने पर निर्धन रोगियों की निःशुल्क चिकित्सा होती रहती थी, सम्पन्न पृष्ठभूमि के मरीज़ तुलनात्मक रूप से कम लोग होते थे और इस केन्द्र में चिकित्सा का शुल्क भी काफ़ी कम रखा गया था, इसीलिए सम्पन्न लोगों से होने वाली आय भी केन्द्र को चलाने के लिए अपर्याप्त होती थी। सरकार से अनुदान मिलता नहीं था, दानवीर व्यक्ति दान देने के लिए धार्मिक न्यास आदि का रुख़ करते थे, ऐसे में संस्थापक डॉ सदानन्द सिंह, अपने स्तर से केन्द्र को चलायमान रखने के लिए आर्थिक स्तर पर जूझते रहते थे।