विशेषता
निर्भीक एवं अनुसंधान परक चिकित्सा :
हमारा प्रयास होता है और यह बताते हुए हमें गर्व है कि असाध्य रोगों जैसे- मधुमेह, विभिन्न प्रकार के गठिया, उच्च एवं निम्न रक्तचाप, सोरायसिस, एक्जिमा, किडनी के रोग एवं जीवन से निराश मरीज़ो को हम निराश लौटने न दें और इस केन्द्र में ऐसे डरे सहमे और मौत के डर से आतंकित मरीज़ो को उनके ठीक हो जाने की आशा दें तथा नया जीवन प्राप्त करवाने में उनकी सहायता करें। हम प्रत्येक मरीज़ के लिए उसकी चिकित्सा एवं आहार की मौलिक योजना एवं रणनीति बनाते हैं तथा भिन्न - भिन्न रोगों के उपचार हेतु नए - नए शोध करते रहते हैं, जैसे -
- सोरायसिस की चिकित्सा, नमक के विभिन्न प्रयोगों से सम्भव हो पाई।
- किडनी की समस्याओं में शुद्ध और सम्पूर्ण रूप से प्राकृतिक शहद के तर्कसंगत उपयोग से चिकित्सा सम्भव हो पाई।
- बढ़ती उम्र तथा विभिन्न कारणों से उपजे बहरेपन की समस्या से त्वरित निजात पाने के लिए प्राकृतिक रूप से तैयार किया गया एक “ईयर ड्राॅप“ विकसित किया गया है, जिसके इस्तेमाल से बहरेपन तथा आंशिक बहरेपन के मरीज़ों को त्वरित लाभ होता हुआ देखा गया है। इसपर अभी और प्रयोग चल रहे हैं तथा कुल मरीज़ो में से 95 प्रतिशत मरीज़ों को इससे त्वरित लाभ हुआ है।
- मिट्टी के मकान में निवास करने से होने वाले आरोग्य लाभ को स्थापित किया गया।
- पेजेट्स ऑफ़ बोन नामक मारक रोग की सफल चिकित्सा में सेब के साथ गाय के दूध से निर्मित दही के तर्कसंगत प्रयोग को स्थापित किया।
- बालों की असमय सफ़ेदी को पुनः सामान्य करने में हम सफ़ल हो चुके हैं किन्तु वर्तमान में हमारा शोध पुरुषों की दाढ़ी और मूंछ के रंग को वापस सामान्य करने की दिशा में चल रहा है।
जीवन से निराश और मंहगे अस्पतालों की सेवा प्राप्त कर पाने में असमर्थ अनेक मरीज़ो की चिकित्सा के उत्साहजनक परिणामों के बाद हमलोग आशा और विश्वास से भरे हुए हैं कि हमारी निर्भीक और अनुसंधान परक चिकित्सा पद्धति से, जो कि उत्तरोत्तर प्रगति करती जा रही है, चिकित्सा के क्षेत्र में हम नित नये आयामों को छूते जा रहे हैं। हमें पूरा विश्वास है कि असाध्य रोगों के उपचार में हमलोग बहुत ही जल्दी नये क्षितिज तक पहुँच सकेंगे।
परिवेश :
अक्षुण्ण हरित वातावरण में शान्तिमय अवस्था, मानसिक रूप से रोगियों को अपने आत्मिक, स्वाभाविक स्वरूप के सानिध्य में ले आने में सहायक होती है। प्रकृति के मिलन से उत्साहित क्षतिग्रस्त मानव प्राण व काया, रोग मुक्ति के लिए प्रयासरत होते हुए, स्वतः इस चिकित्सा पद्धति को अपनाने में सक्षम हो जाती है। हम अपने परिसर के अन्दर बिना वजह झाड़ियों को भी नहीं काटते। कभी किसी प्रकार के रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते हैं। आवश्यकतानुसार नीम के पत्ते उबाल कर, पौधों पर उस पानी का छिड़काव करते हैं। तुलसी के पत्तों से मच्छरों को मरीज़ों के आवासीय क्षेत्र से दूर भगाते हैं। हमारे इन प्रयासों से परिसर में नैसर्गिक संतुलन बना रहता है। परिणाम स्वरूप यहाँ कई प्रकार के जीव - जन्तु, सहजीवन करते देखे जा सकते हैं। इसी वजह से इस परिसर में लुप्तप्राय कई प्रजातियों के जीव-जन्तुओं ने अपना अभयारण्य बना रखा है। ऐसे परिवेश में रहते हुए मरीज़ों को शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ होने लगता है।
अमृत आहार :
अमृत यानी “अ - मृत“ यानी बिना मरा हुआ या जीवित। प्राकृतिक पेय जल का प्रयोग, शुद्ध एवं प्राकृतिक शहद, चोकर समेत मोटा पिसा आटा, बिना पॉलिश किया हुआ लाल चावल, छिलका समेत दाल, हरी सब्ज़ी जिसे बिना नष्ट किए पकाया गया हो, बिना रसायन का काला गुड़ आदि का अमृत सेवन हमारी चिकित्सा का आधार है। इन सबके विभिन्न प्रयोगों से हम विभिन्न असाध्य रोगों की चिकित्सा कर पाते हैं। साथ ही हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि यहाँ से आरोग्य लाभ के बाद भी भूतपूर्व मरीज़ो को अपना स्वास्थ्य अच्छा बनाए रखने हेतु शुद्ध, प्राकृतिक और बिना ज़हरीले रसायन के अमृत खाद्य पदार्थ उपलब्ध होते रहें।
चिकित्सा पद्धति :
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अनूठी है। इसे नहीं जानने समझने वाले लोगों को हैरत हो सकती है कि बिना किसी तरह के ऑपरेशन या तेज़ दवा के रोग आखिर ठीक हुआ तो कैसे ? लेकिन यह सत्य है कि बिना दवा तथा चीर फाड़ किए हुए आहार के बदलाव से यानी आहार को दवा की तरह प्रयोग करके, मिट्टी, पानी, धूप, हवा के विभिन्न प्रयोगों से, खनिज लवणों के इस्तेमाल से मरीज़ के भयंकर से भी भयंकर रोग को अत्यंत ही अल्पकाल में इस विधि से काबू में किया जाता है यानि मरीज़ के स्वस्थ्य को इतना सुदृढ़ किया जाता है कि वह किसी भी रोग को अपने अंदर रहने ही नहीं देता है। हमारे केन्द्र की चिकित्सा में यह विशेषता है कि हम लकीर के फक़ीर न बने रह कर, ढूंढते हैं कि अमुक रोग का इलाज वस्तुतः छिपा कहाँ है।
मुखाकृति से रोग की पहचान :
आपने कभी न कभी महसूस किया होगा कि समय के साथ आपका चेहरा बदल रहा है। अपने मित्र या रिश्तेदार से यदि आप लम्बे समय बाद मिले हों तो आपको ज़रूर ऐसा लगा होगा कि उनके चेहरे में कुछ बदलाव आए हैं। हममें से हर एक ने ऐसा अनुभव तो किया है लेकिन इस पर कभी गम्भीरता से सोचा नहीं है कि ये बदलाव क्या हैं। हर व्यक्ति इसे एजिंग या उम्र का असर समझ कर अवश्यम्भावी मान लेता है। किन्तु ऐसा है नहीं, वस्तुतः चेहरे पर आए बदलाव शरीर के अन्दर घट रहे घटनाक्रम के सूचक होते हैं। प्रकृति के इन संकेतों को समझने वाले इससे भविष्य में आने वाले रोग का पूर्वानुमान लगा कर पहले ही उसकी चिकित्सा कर देते हैं। जिससे महत्वपूर्ण अंग क्षतिग्रस्त होने से बच जाते हैं। साथ ही यदि जाँच रिपोर्ट त्रुटिपूर्ण हो तो भी चेहरे पर मौजूद लक्षण सही चिकित्साक्रम बनाने में हमारी सहायता करते हैं। परिणाम स्वरूप हमारी प्राकृतिक चिकित्सा के बाद व्यक्ति अपनी उम्र से कई वर्ष कम दिखने लगते हैं।